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नकामयाबी की निराशा

 कोशिश तो थी मेरी ऊँची उड़ान भरने की,  अब उन कोशिशो से नकामयाब होने लगा हूँ!  परिवार की जिम्मेदारियों ने दबाया है मुझे,  पर उठा हूँ जरूर पर सहारा न मिला!  जिद्द तो अब भी है मुकाम पाने की,  पर लगन ने जिद्द से नाता ही तोड़ दिया न मुकाम पाने की!  अब तो छोटो का नमन भी दमन पर चोंटो का इशारा दे रही,  रिश्तों का बंधन भी धीमी धीमी किनारा दे रही!  इस जमाने से मैं क्या कहूँ जो नकामयाबी में आँखे बड़ी और कामयाबी में आँखे झुका लिया करते हैं!  कामयाब आदमी का संघर्ष सबको दिखता है,  नकामयाब आदमी का संघर्ष किसी को दिखाई नहीं देती!  कोशिश तो थी मेरी ऊँची उड़ान भरने की,  अब उन कोशिशो से नकामयाब होने लगा हूँ!  Wrritten by gajanand jayanti kenwat